tag:blogger.com,1999:blog-36175848908306131932024-02-08T10:59:37.338-08:00Kavitaहिन्दी, मराठी कविताए, शेर ओ शायरी और गज़ले, मराठी चारोळ्या, Hindi, Marathi, Sheo o Shayari, Gazle, Songs, Quitat from Mushayara's for famous Urdu & Hindi & Marathi PoetsSumedhhttp://www.blogger.com/profile/11533458660230230361noreply@blogger.comBlogger34125tag:blogger.com,1999:blog-3617584890830613193.post-12675732111071921402009-08-11T04:25:00.000-07:002009-08-11T04:26:12.646-07:00दुष्यंत कुमार - 3रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया <br />इस बहकती हुई दुनिया को संभालो यारों <br /><br />कैसे आकाश में सूराख नहीं हो सकता <br />एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारोंSumedhhttp://www.blogger.com/profile/11533458660230230361noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3617584890830613193.post-10785502636991900732009-08-11T04:22:00.000-07:002009-08-11T04:24:53.661-07:00दुष्यंत कुमार - 2सर पे धुप आयी तो दरख्त बन गया मैं <br />तेरी ज़िन्दगी में अक्सर मैं कोई वजह रहा हूँ <br /><br />कभी दिल में आरजू सा , कभी मुंह में बददुआ सा <br />मुझे जिस तरह भी चाहा , मैं उस तरह रहा हूँSumedhhttp://www.blogger.com/profile/11533458660230230361noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3617584890830613193.post-25283265499747955662009-08-11T04:20:00.000-07:002009-08-11T04:21:27.915-07:00दुष्यंत कुमार - 1लफ्ज़ एहसास से छाने लगे , ये तो हद है<br />लफ्ज़ मन भी छुपाने लगे , ये तो हद है<br /><br />आप दीवार गिराने के लिया आये थे<br />आप दीवार उठाने लगे , ये तो हद है<br /><br />खामोशी शोर से सुनते थे की घबराती है<br />खामोशी शोर मचाने लगे , ये तो हद हैSumedhhttp://www.blogger.com/profile/11533458660230230361noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3617584890830613193.post-85136452486402145742009-01-30T20:11:00.000-08:002009-01-30T22:37:20.000-08:00ज़ुल्फ़ बिखरा के निकले वो घर से<p>ज़ुल्फ़ बिखरा के निकले वो घर से<br />देखो बादल कहाँ आज बरसे।</p> <p>फिर हुईं धड़कनें तेज़ दिल की<br />फिर वो गुज़रे हैं शायद इधर से।</p> <p>मैं हर एक हाल में आपका हूँ<br />आप देखें मुझे जिस नज़र से।</p> <p>ज़िन्दग़ी वो सम्भल ना सकेगी<br />गिर गई जो तुम्हारी नज़र से।</p> <p>बिजलियों की तवाजों में ‘बेकल’<br />आशियाना बनाओ शहर से।</p> <p>–</p>Sumedhhttp://www.blogger.com/profile/11533458660230230361noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3617584890830613193.post-22853372657312449472009-01-23T03:34:00.000-08:002009-01-23T04:02:32.280-08:00Rahat Indori Live in Mushaira<iframe allowfullscreen='allowfullscreen' webkitallowfullscreen='webkitallowfullscreen' mozallowfullscreen='mozallowfullscreen' width='320' height='266' src='https://www.blogger.com/video.g?token=AD6v5dwail5A40l0yXBByqv1d3j-SPETEWNAWe_TrBvIwkQLAMoEpztbMvayZ7Ht8eXPvTHGCHzd_a_Kbr6sB81U' class='b-hbp-video b-uploaded' frameborder='0'></iframe>Sumedhhttp://www.blogger.com/profile/11533458660230230361noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3617584890830613193.post-22466735545439181332008-12-04T03:59:00.000-08:002008-12-04T04:00:12.849-08:00राहत इन्दोरी - 3अपनी पहचान मिटने को कहा जाता है.<br />बस्तिया छोड़ के जाने को कहा जाता है<br />पत्तिया रोज़ गिरा जाती है जहरीली हवा<br />और हमें पेड़ लगाने को कहा जाता है<br />कोई मौसम हो दुःख सुख में गुजरा कौन करता है |<br />परिंदों की तरह सबकुछ गवारा कौन करता है |<br />घरो की राख फिर देखेंगे पहले ये देखना है,<br />घरों को फूंक देने का इशारा कौन करता |<br />जिसे दुनिया कहा जाता है कोठे की तवाइफ़ है |<br />इशारा किसको करती है, नजारा कौन करता है |Sumedhhttp://www.blogger.com/profile/11533458660230230361noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3617584890830613193.post-82221828874331709482008-11-26T03:27:00.001-08:002008-11-26T03:27:38.077-08:00राहत इन्दोरी -2जिहालातो के अंधेरे मिटा के लौट आया |<br /><br />मै आज साडी किताबे जलाके लौट आया |<br /><br />वो अब भी बैठी सिसककर रही होगी |<br /><br />मै अपना हाथ हवा में हिलाकर लौट आया |<br /><br />ख़बर मिली है की सोना निकल रहा है वहा<br /><br />मै जिस जमीं पे ठोकर लगाके आया |Sumedhhttp://www.blogger.com/profile/11533458660230230361noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3617584890830613193.post-11376213441082681582008-09-17T00:41:00.001-07:002008-09-17T00:42:46.152-07:00Aggobai Dhaggobai<div class="contents"> <div class="info-block" id="sizes"> <div class="imageSizeBar"><a href="javascript:ns_SendPostBack('setImage','-1')"><br /></a> </div> </div> </div> <!-- class="view" --> <table cellpadding="0" cellspacing="0"><tbody><tr><td><style type="text/css"> .imageViewer { background-color:#FFFFFF; border:1px solid #CCCCCC; padding:4px; display:block; } </style> <img class="imageViewer" alt="Aggobai Dhaggobai - " src="http://docthumb0.esnips.com/imageable/medium/9ec15120-f489-4044-afa2-7adb32ac9fea/?du=a5dfe3bd-3f0c-416f-9930-fce031780632&uu=5aa3371d-0fc9-4dc6-9f55-598cb9195527&dt=1149318325000&fu=07cf8bda-60bd-41ed-98ae-f4cb28cce5ce" /></td></tr></tbody></table>Sumedhhttp://www.blogger.com/profile/11533458660230230361noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3617584890830613193.post-42641852240110690402008-09-17T00:40:00.001-07:002008-09-17T00:40:40.435-07:00मराठी<div class="contents"> <div class="info-block" id="sizes"> <div class="imageSizeBar"><br /></div> </div> </div> <!-- class="view" --> <table cellpadding="0" cellspacing="0"><tbody><tr><td><style type="text/css"> .imageViewer { background-color:#FFFFFF; border:1px solid #CCCCCC; padding:4px; display:block; } </style> <img class="imageViewer" alt="Zopa Majhi Asali Tari - " src="http://www.esnips.com/nsdoc/b7fc0b4d-d885-4cc3-a7f0-218a96d4ceda" /></td></tr></tbody></table>Sumedhhttp://www.blogger.com/profile/11533458660230230361noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3617584890830613193.post-10237001808014034212008-09-01T02:40:00.000-07:002008-09-01T02:41:14.548-07:00रुपगंधामलमली तारुण्य माझे, तू पहाटे पांघरावे<br />मोकळ्या केसात माझ्या, तू जीवाला गुंतवावे<br /><br />लागुनि थंडी गुलाबी, शिरशिरी यावी अशी ही<br />राजसा माझ्यात तू अन् मी तुझ्यामाजी भिनावे<br /><br />कापर्या माझ्या तनूची तार झंकारुन जावी<br />रेशमी संगीत स्पर्शाचे, पुन्हा तू पेटवावे<br /><br />रे तुला बाहुत माझ्या, रुपगंधा जाग यावी<br />मी तुला जागे करावे, तू मला बिलगून जावेSumedhhttp://www.blogger.com/profile/11533458660230230361noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3617584890830613193.post-66095839226752241902008-09-01T02:36:00.001-07:002008-09-01T02:36:20.185-07:00आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे<p>आईना क्यूँ न दूँ के तमाशा कहें जिसे<br />ऐसा कहाँ से लाऊँ के तुझसा कहें जिसे<br /><br /></p><p>हसरत ने ला रखा तेरी बज़्म-ए-ख़याल में<br />गुलदस्ता-ए-निगाह सुवेदा कहें जिसे<br /><br /></p><p>फूँका है किसने गोशे मुहब्बत में ऐ ख़ुदा<br />अफ़सून-ए-इन्तज़ार तमन्ना कहें जिसे<br /><br /></p><p>सर पर हुजूम-ए-दर्द-ए-ग़रीबी से डलिये<br />वो एक मुश्त-ए-ख़ाक के सहरा कहें जिसे<br /><br /></p><p>है चश्म-ए-तर में हसरत-ए-दीदार से निहाँ<br />शौक़-ए-इनाँ गुसेख़्ता दरिया कहें जिसे<br /><br /></p><p>दरकार है शिगुफ़्तन-ए-गुल हाये ऐश को<br />सुबह-ए-बहार पंबा-ए-मीना कहें जिसे<br /><br /></p>"गा़लिब" बुरा न मान जो वाइज़ बुरा कहे<br />ऐसा भी कोई है के सब अच्छा कहें जिसेSumedhhttp://www.blogger.com/profile/11533458660230230361noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3617584890830613193.post-31249484108510027592008-09-01T02:35:00.001-07:002008-09-01T02:35:50.206-07:00धमकी में मर गया<p>धम्की में मर गया जो न बाब-ए नबर्द था<br />इश्क़-ए नबर्द-पेशह तलबगार-ए मर्द था<br /><br /></p><p>था ज़िन्दगी में मर्ग का खटका लगा हुआ<br />उड़ने से पेशतर भी मिरा रन्ग ज़र्द था<br /><br /></p><p>तालीफ़-ए नुसख़हहा-ए वफ़ा कर रहा था मैं<br />मज्मू`अह-ए ख़याल अभी फ़र्द फ़र्द था<br /><br /></p><p>दिल ता जिगर कि साहिल-ए दरया-ए ख़ूं है अब<br />उस रहगुज़र में जलवह-ए गुल आगे गर्द था<br /><br /></p><p>जाती है कोई कश्मकश अन्दोह-ए `इश्क़ की<br />दिल भी अगर गया तो वुही दिल का दर्द था<br /><br /></p><p>अह्बाब चारह-साज़ी-ए वहशत न कर सके<br />ज़िन्दां में भी ख़याल बियाबां-नवर्द था<br /><br /></p><p>यह लाश-ए बे-कफ़न असद-ए ख़स्तह-जां की है<br />हक़ मग़्फ़रत करे `अजब आज़ाद मर्द था </p>Sumedhhttp://www.blogger.com/profile/11533458660230230361noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3617584890830613193.post-41951566119274453502008-09-01T02:32:00.001-07:002008-09-01T02:32:50.818-07:00चल मेरे साथ ही चल<p>चल मेरे साथ ही चल ऐ मेरी जान-ए-ग़ज़ल<br />इन समाजों के बनाये हुये बंधन से निकल, चल<br /><br /></p><p>हम वहाँ जाये जहाँ प्यार पे पहरे न लगें<br />दिल की दौलत पे जहाँ कोई लुटेरे न लगें<br />कब है बदला ये ज़माना, तू ज़माने को बदल, चल<br /><br /></p><p>प्यार सच्चा हो तो राहें भी निकल आती हैं<br />बिजलियाँ अर्श से ख़ुद रास्ता दिखलाती हैं<br />तू भी बिजली की तरह ग़म के अँधेरों से निकल, चल<br /><br /></p><p>अपने मिलने पे जहाँ कोई भी उँगली न उठे<br />अपनी चाहत पे जहाँ कोई दुश्मन न हँसे<br />छेड़ दे प्यार से तू साज़-ए-मोहब्बत-ए-ग़ज़ल, चल<br /><br /></p>पीछे मत देख न शामिल हो गुनाहगारों में<br />सामने देख कि मंज़िल है तेरी तारों में<br />बात बनती है अगर दिल में इरादे हों अटल, चलSumedhhttp://www.blogger.com/profile/11533458660230230361noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3617584890830613193.post-33011705250859897792008-09-01T02:25:00.001-07:002008-09-01T02:25:27.359-07:00स्वतंत्रता दिवस की पुकार<p>पन्द्रह अगस्त का दिन कहता -<br />आज़ादी अभी अधूरी है।<br />सपने सच होने बाक़ी हैं,<br />रावी की शपथ न पूरी है॥<br /><br /></p><p>जिनकी लाशों पर पग धर कर<br />आजादी भारत में आई।<br />वे अब तक हैं खानाबदोश<br />ग़म की काली बदली छाई॥<br /><br /></p><p>कलकत्ते के फुटपाथों पर<br />जो आंधी-पानी सहते हैं।<br />उनसे पूछो, पन्द्रह अगस्त के<br /> बारे में क्या कहते हैं॥<br /><br /></p><p>हिन्दू के नाते उनका दुख<br />सुनते यदि तुम्हें लाज आती।<br />तो सीमा के उस पार चलो<br />सभ्यता जहाँ कुचली जाती॥<br /><br /></p><p>इंसान जहाँ बेचा जाता,<br />ईमान ख़रीदा जाता है।<br />इस्लाम सिसकियाँ भरता है,<br /> डालर मन में मुस्काता है॥<br /><br /></p><p>भूखों को गोली नंगों को<br />हथियार पिन्हाए जाते हैं।<br />सूखे कण्ठों से जेहादी<br />नारे लगवाए जाते हैं॥<br /></p><p>लाहौर, कराची, ढाका पर<br /> मातम की है काली छाया।<br />पख़्तूनों पर, गिलगित पर है<br />ग़मगीन ग़ुलामी का साया॥<br /><br /></p><p>बस इसीलिए तो कहता हूँ<br />आज़ादी अभी अधूरी है।<br />कैसे उल्लास मनाऊँ मैं?<br />थोड़े दिन की मजबूरी है॥<br /><br /></p><p>दिन दूर नहीं खंडित भारत को<br />पुनः अखंड बनाएँगे।<br />गिलगित से गारो पर्वत तक<br /> आजादी पर्व मनाएँगे॥<br /><br /></p>उस स्वर्ण दिवस के लिए आज से<br /> कमर कसें बलिदान करें।<br />जो पाया उसमें खो न जाएँ,<br />जो खोया उसका ध्यान करें॥Anonymousnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3617584890830613193.post-68942895675450307652008-09-01T02:23:00.001-07:002008-09-01T02:23:44.166-07:00आग जलती रहे<p>एक तीखी आँच ने </p><p>इस जन्म का हर पल छुआ, </p><p>आता हुआ दिन छुआ </p><p>हाथों से गुजरता कल छुआ </p><p>हर बीज, अँकुआ, पेड़-पौधा, </p><p>फूल-पत्ती, फल छुआ </p><p>जो मुझे छूने चली </p><p>हर उस हवा का आँचल छुआ </p><p>... प्रहर कोई भी नहीं बीता अछूता </p><p>आग के संपर्क से </p><p>दिवस, मासों और वर्षों के कड़ाहों में </p><p>मैं उबलता रहा पानी-सा </p><p>परे हर तर्क से </p><p>एक चौथाई उमर </p><p>यों खौलते बीती बिना अवकाश </p><p>सुख कहाँ </p><p>यों भाप बन-बन कर चुका, </p><p>रीता, भटकता </p><p>छानता आकाश </p><p>आह! कैसा कठिन </p><p>... कैसा पोच मेरा भाग! </p><p>आग चारों और मेरे </p><p>आग केवल भाग! </p><p>सुख नहीं यों खौलने में सुख नहीं कोई, </p><p>पर अभी जागी नहीं वह चेतना सोई, </p><p>वह, समय की प्रतीक्षा में है, जगेगी आप </p><p>ज्यों कि लहराती हुई ढकने उठाती भाप! </p><p>अभी तो यह आग जलती रहे, जलती रहे </p><p>जिंदगी यों ही कड़ाहों में उबलती रहे । </p>Anonymousnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3617584890830613193.post-79399683480964566472008-09-01T02:22:00.001-07:002008-09-01T02:22:35.154-07:00विदा के बाद प्रतीक्षा<p>परदे हटाकर करीने से<br />रोशनदान खोलकर<br />कमरे का फर्नीचर सजाकर<br />और स्वागत के शब्दों को तोलकर<br />टक टकी बाँधकर बाहर देखता हूँ<br />और देखता रहता हूँ मैं।<br /><br /></p><p>सड़कों पर धूप चिलचिलाती है<br />चिड़िया तक दिखायी नही देती<br />पिघले तारकोल में<br />हवा तक चिपक जाती है बहती बहती,<br />किन्तु इस गर्मी के विषय में किसी से<br />एक शब्द नही कहता हूँ मैं।<br /><br /></p>सिर्फ़ कल्पनाओं से<br />सूखी और बंजर ज़मीन को खरोंचता हूँ<br />जन्म लिया करता है जो ऐसे हालात में<br />उनके बारे में सोचता हूँ<br />कितनी अजीब बात है कि आज भी<br />प्रतीक्षा सहता हूँ।Anonymousnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3617584890830613193.post-46238231281765379962008-09-01T02:21:00.000-07:002008-09-01T02:22:03.877-07:00एक आशीर्वादजा तेरे स्वप्न बड़े हों।<br />भावना की गोद से उतर कर<br />जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें।<br />चाँद तारों सी अप्राप्य ऊचाँइयों के लिये<br />रूठना मचलना सीखें।<br />हँसें<br />मुस्कुराऐं<br />गाऐं।<br />हर दीये की रोशनी देखकर ललचायें<br />उँगली जलायें।<br />अपने पाँव पर खड़े हों।<br />जा तेरे स्वप्न बड़े हों।Anonymousnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3617584890830613193.post-86510892532485287972008-09-01T02:20:00.000-07:002008-09-01T02:21:10.179-07:00इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो हैइस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है,<br />नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है।<br /><br />एक चिनगारी कही से ढूँढ लाओ दोस्तों,<br />इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है।<br /><br />एक खंडहर के हृदय-सी, एक जंगली फूल-सी,<br />आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है।<br /><br />एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी,<br />यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है।<br /><br />निर्वचन मैदान में लेटी हुई है जो नदी,<br />पत्थरों से, ओट में जा-जाके बतियाती तो है।<br /><br />दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर,<br />और कुछ हो या न हो, आकाश-सी छाती तो है।Anonymousnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3617584890830613193.post-47275116958473189922008-08-31T22:59:00.000-07:002008-08-31T23:02:39.975-07:00कितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहींकितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहीं<br />रात के साथ गई बात मुझे होश नहीं<br /><br />मुझको ये भी नहीं मालूम कि जाना है कहां<br />थाम ले कोई मेरा हाथ मुझे होश नहीं<br /><br />आंसुओं और शराबों में गुज़र है अब तो<br />मैं ने कब देखी थी बरसात मुझे होश नहीं<br /><br />जाने कुआ टूटा है पैमाना दिल है मेरा<br />बिखरे बिखरे हैं ख़यालात मुझे होश नहींSumedhhttp://www.blogger.com/profile/11533458660230230361noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3617584890830613193.post-3967748705040529072008-08-31T22:39:00.000-07:002008-08-31T22:40:50.837-07:00ठेकेदार भाग लियाफावडे ने<br />मिटटी काटने से इंकार कर दिया<br />और<br />बदरपुर पर जा बैठा<br /> एक और |<br />ऐसे में<br />तसले को मिटटी धोना<br />कैसे गवारा होता ?<br />काम छोड़ आ गया<br />फावडे की बगल में |<br />धुर्मुत की कदमताल ... रुक गई,<br />कुदाल के इशारे पर<br />तत्काल,<br />जाल ज्यों ही कुढ़ती हुई<br />रोती बड़बड़ाती हुई<br />आ गिरी औंधे मुंह <br /> रोडी के ऊपर |<br />- आख़िर ये कब तक?<br />कब तक सहेंगे हम ?Sumedhhttp://www.blogger.com/profile/11533458660230230361noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3617584890830613193.post-50484328937159876382008-08-25T01:19:00.000-07:002008-08-25T01:21:05.975-07:00ये इंतजार ग़लत है की शाम हो जाएये इंतजार ग़लत है की शाम हो जाए<br />जो हो सके तो अभी दौर-ऐ-जाम हो जाए<br /><br />खुदा-न ख्वास्ता पीने लगे जो वाइज़ भी<br />हमारे वास्ते पीना हराम हो जाए<br /><br />मुझ जैसे रिंद को भी तू ने हश्र में या रब<br />बुला लिया है तो कुछ इंतज़ाम हो जाए<br /><br />वो सहन-ऐ-बाग़ में आए हैं माय -काशी के लिए<br />खुदा करे के हर इक फूल जाम हो जाए<br /><br />मुझे पसंद नहीं इस पे गाम -जान होना<br />वो रह-गुज़र जो गुज़र-गाह-ऐ-आम हो जाएSumedhhttp://www.blogger.com/profile/11533458660230230361noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3617584890830613193.post-6170461381474931092008-08-06T00:01:00.000-07:002008-09-01T02:18:47.583-07:00वय निघून गेलेदेखावे बघण्याचे वय निघून गेले<br />रंगांवर भुलण्याचे वय निघून गेले<br /><br />गेले ते उडुन रंग<br />उरले हे फिकट संग<br />हात पुढे करण्याचे वय निघून गेले<br /><br />कळते पाहून हेच<br />हे नुसते चेहरेच<br />चेहऱ्यांत जगण्याचे वय निघून गेले<br /><br />रोज नवे एक नाव<br />रोज नवे एक गाव<br />नावगाव पुसण्याचे वय निघून गेले<br /><br />रिमझिमतो रातंदिन<br />स्मरणांचा अमृतघन<br />पावसात भिजण्याचे वय निघून गेले<br /><br />हृदयाचे तारुणपण<br />ओसरले नाही पण<br />झंकारत झुरण्याचे वय निघुन गेले<br /><br />एकटाच मज बघून<br />चांदरात ये अजून<br />चांदण्यात फिरण्याचे वय निघून गेले<br /><br />आला जर जवळ अंत<br />कां हा आला वसंत?<br />हाय,फुले टिपण्याचे वय निघून गेलेSumedhhttp://www.blogger.com/profile/11533458660230230361noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3617584890830613193.post-13647742666924469182008-07-28T19:36:00.000-07:002008-09-01T02:18:29.711-07:00मधुशालामृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,<br />प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,<br />पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,<br />सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।।१।<br /><br />प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,<br />एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला,<br />जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,<br />आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।।२।<br /><br />प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,<br />अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला,<br />मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,<br />एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।।३।<br /><br />भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,<br />कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,<br />कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ!<br />पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।।४।<br /><br />मधुर भावनाओं की सुमधुर नित्य बनाता हूँ हाला,<br />भरता हूँ इस मधु से अपने अंतर का प्यासा प्याला,<br />उठा कल्पना के हाथों से स्वयं उसे पी जाता हूँ,<br />अपने ही में हूँ मैं साकी, पीनेवाला, मधुशाला।।५।<br /><br />मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवला,<br />'किस पथ से जाऊँ?' असमंजस में है वह भोलाभाला,<br />अलग-अलग पथAnonymousnoreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-3617584890830613193.post-2242662728018272462008-07-28T19:31:00.001-07:002008-09-01T02:18:12.607-07:00मौनाची भाषांतरेचल आता बोलुन घेऊ ! बोलुन घेऊ थोडे !<br /><br />सुकण्याआधी माती आणि जाण्याआधी तडे !<br /><br />संपत आलाय पाऊसकाळ ! विरत चाललेत मेघ !<br /><br />विजेचीही आता सतत उठ्त नाही रेघ !<br /><br />मृदगंधाने आवरुन घेतलाय धुंदावण्याचा खेळ!<br /><br />मोरपंखी पिसर्यांनी ही मिटण्याची वेळ !<br /><br />सावाळ्या हवेत थोडं मिसळ्त चाललंय उन्ह !<br /><br />खळखळणार्री नदी आता वाहते जपून जपून !<br /><br /><br /><br />चल आता बोलुन घेऊ ! बोलुन घेऊ थोडे !<br /><br />लक्षात ठेव अर्थांपेक्षा शब्दच असतात वेडे !<br /><br />मनामधला कानाकोपरा चाचपून घे नीट !<br /><br />लपले असतील अजुन कोठे चुकार शब्द धीट !<br /><br />नजरा, आठवण, शपथा . . . सार्यांस उन्ह द्यायला हवे !<br /><br />जाणयाधी ओले मन वाळायला तर हवे !<br /><br />हळवी बिळवी होत पाहू नकोस माझ्याकडे<br /><br />माझ्यापेक्षा लक्ष दे माझ्या बोलण्याकडे<br /><br />भेटण्याआधीच निश्चित असते जेव्हा वेळ जायची !<br /><br />समजुतदार मुलांसारखी खेळणी आवरून घ्यायची !<br /><br />एकदम कर पाठ आणि मन कर कोरे !<br /><br />भेटलो ते ही बरे झाले ! चाललो ते ही बरे !<br /><br />मी ही घेतो आवरून सारे ! तू ही सावरून जा !<br /><br />तळहातीच्या रेषांमधल्या वळणावरून जा !<br /><br />खुदा-बिदा असलाच तर मग त्यालाच सोबत घे !<br /><br />' करार पूर्ण झाला ' अशी तेवढी दे !Anonymousnoreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-3617584890830613193.post-69072648251624181642008-07-28T19:30:00.000-07:002008-09-01T02:17:59.505-07:00मांबेसन की सोंधी रोटी पर<br />खट्टी चटनी जैसी मां<br />याद आती है चौका-बासन<br />चिमटा फुकनी जैसी मां<br /><br />बांस की खुर्री खाट के ऊपर<br />हर आहट पर कान धरे<br />आधी सोई आधी जागी<br />थकी दोपहरी जैसी मां<br /><br />चिड्रियों के चहकार में गुंजे<br />राधा-मोहन अली-अली<br />मुर्गे की आवाज़ से खुलती<br />घर की कुंडी जैसी मां<br /><br />बिवी, बेटी, बहन, पड्रोसन<br />थोडी थोडी सी सब में<br />दिन भर इक रस्सी के ऊपर<br />चलती नटनी जैसी मां<br /><br />बांट के अपना चेहरा, माथा,<br />आंखें जाने कहां गई<br />फटे पुराने इक अलबम में<br />चन्चल लड्रकी जैसी मांAnonymousnoreply@blogger.com0