कितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहीं

कितनी पी कैसे कटी रात मुझे होश नहीं
रात के साथ गई बात मुझे होश नहीं

मुझको ये भी नहीं मालूम कि जाना है कहां
थाम ले कोई मेरा हाथ मुझे होश नहीं

आंसुओं और शराबों में गुज़र है अब तो
मैं ने कब देखी थी बरसात मुझे होश नहीं

जाने कुआ टूटा है पैमाना दिल है मेरा
बिखरे बिखरे हैं ख़यालात मुझे होश नहीं

ठेकेदार भाग लिया

फावडे ने
मिटटी काटने से इंकार कर दिया
और
बदरपुर पर जा बैठा
एक और |
ऐसे में
तसले को मिटटी धोना
कैसे गवारा होता ?
काम छोड़ आ गया
फावडे की बगल में |
धुर्मुत की कदमताल ... रुक गई,
कुदाल के इशारे पर
तत्काल,
जाल ज्यों ही कुढ़ती हुई
रोती बड़बड़ाती हुई
आ गिरी औंधे मुंह
रोडी के ऊपर |
- आख़िर ये कब तक?
कब तक सहेंगे हम ?

ये इंतजार ग़लत है की शाम हो जाए

ये इंतजार ग़लत है की शाम हो जाए
जो हो सके तो अभी दौर-ऐ-जाम हो जाए

खुदा-न ख्वास्ता पीने लगे जो वाइज़ भी
हमारे वास्ते पीना हराम हो जाए

मुझ जैसे रिंद को भी तू ने हश्र में या रब
बुला लिया है तो कुछ इंतज़ाम हो जाए

वो सहन-ऐ-बाग़ में आए हैं माय -काशी के लिए
खुदा करे के हर इक फूल जाम हो जाए

मुझे पसंद नहीं इस पे गाम -जान होना
वो रह-गुज़र जो गुज़र-गाह-ऐ-आम हो जाए

वय निघून गेले

देखावे बघण्याचे वय निघून गेले
रंगांवर भुलण्याचे वय निघून गेले

गेले ते उडुन रंग
उरले हे फिकट संग
हात पुढे करण्याचे वय निघून गेले

कळते पाहून हेच
हे नुसते चेहरेच
चेहऱ्यांत जगण्याचे वय निघून गेले

रोज नवे एक नाव
रोज नवे एक गाव
नावगाव पुसण्याचे वय निघून गेले

रिमझिमतो रातंदिन
स्मरणांचा अमृतघन
पावसात भिजण्याचे वय निघून गेले

हृदयाचे तारुणपण
ओसरले नाही पण
झंकारत झुरण्याचे वय निघुन गेले

एकटाच मज बघून
चांदरात ये अजून
चांदण्यात फिरण्याचे वय निघून गेले

आला जर जवळ अंत
कां हा आला वसंत?
हाय,फुले टिपण्याचे वय निघून गेले

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