कहाँ तो तय था
कहाँ तो तय था चिरागां, हरेक घर के लिए,
कहाँ चिराग मयस्सर नहीं, शहर के लिए।
कहाँ चिराग मयस्सर नहीं, शहर के लिए।
दरख्तों के साए मैं धुप लगती है,
चलो यहाँ से चलें उम्र भर के लिए।
न हो कमीज तो पांवों से पेट ढक लेंगे,
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफर के लिए।
खुदा नहीं , न सही आदमी का ख्वाब सही,
कोई हसीं नजारा तो है नजर के लिए।
वे मुतमईन हैं की पत्थर पिघल नहीं सकता,
मैं बेकरार हूँ आवाज मैं असर के लिए।
तेरा निजाम है सिल दे जुबान शायर की,
ये अहतियात जरूरी है इस बहार के लिए।
जियें तो अपने बगीचे मैं गुलमोहर के तले,
मरें तो गैर की गलियों मैं गुलमोहर के लिए।
1 comments:
Na ho kamij -> bahot ki khubsurat andaj hai apni bat kahneka
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