रहनुमाओं की अदाओं पे फ़िदा है दुनिया
इस बहकती हुई दुनिया को संभालो यारों
कैसे आकाश में सूराख नहीं हो सकता
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारों
दुष्यंत कुमार - 3
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दुष्यंत कुमार - 2
सर पे धुप आयी तो दरख्त बन गया मैं
तेरी ज़िन्दगी में अक्सर मैं कोई वजह रहा हूँ
कभी दिल में आरजू सा , कभी मुंह में बददुआ सा
मुझे जिस तरह भी चाहा , मैं उस तरह रहा हूँ
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दुष्यंत कुमार - 1
लफ्ज़ एहसास से छाने लगे , ये तो हद है
लफ्ज़ मन भी छुपाने लगे , ये तो हद है
आप दीवार गिराने के लिया आये थे
आप दीवार उठाने लगे , ये तो हद है
खामोशी शोर से सुनते थे की घबराती है
खामोशी शोर मचाने लगे , ये तो हद है
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ज़ुल्फ़ बिखरा के निकले वो घर से
ज़ुल्फ़ बिखरा के निकले वो घर से
देखो बादल कहाँ आज बरसे।
फिर हुईं धड़कनें तेज़ दिल की
फिर वो गुज़रे हैं शायद इधर से।
मैं हर एक हाल में आपका हूँ
आप देखें मुझे जिस नज़र से।
ज़िन्दग़ी वो सम्भल ना सकेगी
गिर गई जो तुम्हारी नज़र से।
बिजलियों की तवाजों में ‘बेकल’
आशियाना बनाओ शहर से।
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